Thursday, February 25, 2021

मानसिक रोग और जैन धर्म

 कर्म (Source: 1, 2)

1) ज्ञानावरणीय कर्म-
जिस कर्म के उदय से आत्मा के ज्ञान पर आवरण पड़ जाता है, उसे ज्ञानावरणीय कर्म कहते हैं।

2) दर्शनावरणीय कर्म-
जिस कर्म के उदय से आत्मा के यथार्थ अवलोकन/दर्शन पर आवरण पड़ जाता है, उसे दर्शनावरणीय कर्म कहते हैं।

3) वेदनीय कर्म-
जिस कर्म के उदय से हम वेदना अर्थात सुख-दुःख का अनुभव करते हैं, उसे वेदनीय कर्म कहते हैं।


4) मोहनीय कर्म-
जिस कर्म के उदय से हम मोह, राग, द्वेष आदि विकार भावों का अनुभव करते हैं, उसे मोहनीय कर्म कहते हैं।

5) आयु कर्म-
जिस कर्म के उदय से जीव किसी एक शरीर में निश्चित समय तक रुका रहता है, उसे आयु कर्म कहते हैं।

6) नाम कर्म-

7) गोत्र कर्म-
जिस कर्म के उदय से उच्च या नीच कुल कि प्राप्ति होती है, उसे गोत्र कर्म कहते हैं।

8) अंतराय कर्म-
जिस कर्म के उदय से किसी भी सही या अच्छे काम को करने में बाधा/दिक्कत उत्त्पन्न होती है, उसे अंतराय कर्म कहते हैं।

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किस कर्म के उदय से कौन सा मानसिक या अन्य रोग उत्पन्न होते हैं एवं उसको दूर करने के उपाय (मेरा विश्लेषण):

1) ज्ञानावरणीय कर्म- OCD, GAD, Bipolar आदि
उपायः पंच धारणा युक्त पिंडस्थ ध्यान। आग्नेयी धारणा में यह विशेष रूप से सोचें कि अर्हम की अग्नि से ज्ञानावरणीय कर्म नष्ट हो रहे हैं।

2) दर्शनावरणीय कर्म-

3) वेदनीय कर्म- समस्त रोग

उपायः पंच धारणा युक्त पिंडस्थ ध्यान। आग्नेयी धारणा में यह विशेष रूप से सोचें कि अर्हम की अग्नि से वेदनीय कर्म नष्ट हो रहे हैं।

4) मोहनीय कर्म- 

5) आयु कर्म-

6) नाम कर्म-

7) गोत्र कर्म-

8) अंतराय कर्म-

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पंच धारणा युक्त पिंडस्थ ध्यान-

1) पार्थिवी धारणा

लाभ (1): चित्त की चंचलता रोकने में सहायक

चिंतवन (1): मेरी आत्मा सम्पूर्ण राग-द्वेषमय संसार को और समस्त कर्मों को नष्ट करने में सक्षम है।

2) आग्नेयी धारणा

लाभ (1): कर्मों को जलाने की एक प्रक्रिया

चिंतवन (1); मैं पूर्ण स्वस्थ हूँ, मुझे कोई रोग नहीं है।

आत्मा (1); आत्मा पर राख का पुंज इकट्ठा हो गया है।

3) श्वसना/वायवी/मारुती धारणा

लाभ (1): कर्मों को जलाने की एक प्रक्रिया

चिंतवन (1): मैं अब ज्ञान का पुंज बन गया हूँ, सम्पूर्ण अज्ञानता मेरे हृदय से दूर हट गई है।  मैं पूर्ण स्वस्थ हूँ, मुझे कोई रोग नहीं है।

आत्मा (1): हवा से कर्मों की रज उड़ गई और आत्मा स्वच्छ हो गई है।

4) वारुणी धारणा

लाभ (1): 

चिंतवन (1):

आत्मा (1): वर्षा से शुद्ध होकर मेरी आत्मा स्फटिक के समान शुद्ध हो रही है।

5) तत्वरूपवती धारणा

लाभ (1): 

चिंतवन (1): मैं आठ कर्मों से रहित निर्मल पुरुषाकार, नित्य, निरंजन परमात्मा बन गया हूँ।

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