णमोकार मन्त्र
एसोपंचणमोक्कारो, सव्वपावप्पणासणो
मंगला णं च सव्वेसिं, पडमम हवई मंगलं
यह नमस्कार महामंत्र सब पापो का नाश करने वाला तथा सब मंगलो मे प्रथम मंगल है।
णमोकार मंत्र में 5 पद हैं, जिनमें रंग हैं- क्रमश: श्वेत, रक्त, पीत, नील, श्याम। (Source1, Source2)
चत्तारि मंगल - अरहंता मंगलं, सिध्दा मंगलं, साहू मंगलं, केवलिपण्णत्तो धम्मो मंगलं ॥
अर्थ लोक में चार मंगल हैं (1) अरिहन्त मंगल है (2) सिध्द मंगल है (3) साधु मंगल है । (4) केवली प्रणीत जिन धर्म मंगल है ।
चत्तारिलोगुत्तमा-अरिहंता लोगुत्तमा, सिध्दा लोगुत्तमा, साहू लोगुत्तमा, केवलिपण्णत्तो धम्मों लोगुत्तमा ।
अर्थ लोक में चार उत्तम है (2) सिध्द उत्तम है । (3) साधु उत्तम है (4) केवली प्रणीत जिनधर्म उत्तम है ।
चत्तारिशरणं पव्वज्जमि-अरिहंत शरणं पव्वज्जामि, सिध्द शरणं पव्वज्जामि, साहू शरणं पव्वज्जामि, केवलिपण्णत्तो धम्मंशरणं पव्वज्जामि ।
अर्थ लोक में चारशरण हैं । 1- अरिहन्तों की शरण है । 2- सिध्दों की शरण है । 3- साधुओं की शरण है । 4- केवलि प्रणीत जिनधर्म की शरण है ।
अरिहंतो के 46 मूलगुण होते हैं । सिध्दों के 8 मूलगुण होते है । आचार्यों के 36 मूलगुण होते है। उपाध्यायों के 25 मूलगुण होते है । साधुओं के 28 मूलगुण होते है ।
णमो अरिहंताणं | अरिहंतो को नमस्कार हो। | |||
---|---|---|---|---|
णमो सिद्धाणं | सिद्धों को नमस्कार हो। | |||
णमो आयरियाणं | आचार्यों को नमस्कार हो। | |||
णमो उवज्झायाणं | उपाध्यायों को नमस्कार हो। | |||
णमो लोए सव्व साहूणं | लोक के सर्व साधुओं को नमस्कार है। |
एसोपंचणमोक्कारो, सव्वपावप्पणासणो
मंगला णं च सव्वेसिं, पडमम हवई मंगलं
यह नमस्कार महामंत्र सब पापो का नाश करने वाला तथा सब मंगलो मे प्रथम मंगल है।
णमोकार मंत्र में 5 पद हैं, जिनमें रंग हैं- क्रमश: श्वेत, रक्त, पीत, नील, श्याम। (Source1, Source2)
चत्तारि मंगल - अरहंता मंगलं, सिध्दा मंगलं, साहू मंगलं, केवलिपण्णत्तो धम्मो मंगलं ॥
अर्थ लोक में चार मंगल हैं (1) अरिहन्त मंगल है (2) सिध्द मंगल है (3) साधु मंगल है । (4) केवली प्रणीत जिन धर्म मंगल है ।
चत्तारिलोगुत्तमा-अरिहंता लोगुत्तमा, सिध्दा लोगुत्तमा, साहू लोगुत्तमा, केवलिपण्णत्तो धम्मों लोगुत्तमा ।
अर्थ लोक में चार उत्तम है (2) सिध्द उत्तम है । (3) साधु उत्तम है (4) केवली प्रणीत जिनधर्म उत्तम है ।
चत्तारिशरणं पव्वज्जमि-अरिहंत शरणं पव्वज्जामि, सिध्द शरणं पव्वज्जामि, साहू शरणं पव्वज्जामि, केवलिपण्णत्तो धम्मंशरणं पव्वज्जामि ।
अर्थ लोक में चारशरण हैं । 1- अरिहन्तों की शरण है । 2- सिध्दों की शरण है । 3- साधुओं की शरण है । 4- केवलि प्रणीत जिनधर्म की शरण है ।
अरिहंतो के 46 मूलगुण होते हैं । सिध्दों के 8 मूलगुण होते है । आचार्यों के 36 मूलगुण होते है। उपाध्यायों के 25 मूलगुण होते है । साधुओं के 28 मूलगुण होते है ।
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